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गलन की गुप्त ऊष्मा

गलन की गुप्त ऊष्मा – किसी ठोस पदार्थ को उसके गलनांक पर द्रव अवस्था में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उसे गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

गलने की प्रयोग की प्रक्रिया के दौरान गलनांक पर पहुँचने के बाद, जब तक पूरी बर्फ पिघल नहीं जाती तब तक तापमान नहीं बदलता है। बीकर को ऊष्मा देने के बाद भी ऐसा होता है। कणों के आपसी आकर्षण बल को अधीन करके पदार्थ की अवस्था को बदलने में इस ऊष्मा का इस्तेमाल होता है। क्योंकि तापमान में बिना कोई वृद्धि दर्शाए इस ऊष्मा को बर्फ अवशोषित कर लेती है, यह माना जाता है कि यह बीकर में लिए गए पदार्थ में छुपी रहती है, जिसे गुप्त ऊष्मा कहते हैं। (यहाँ गुप्त का अर्थ छुपी हुई से है।)

बर्फ़ के गलन की गुप्त ऊष्मा 80 कैलोरी/ग्राम या 3.34×105 जूल/किग्रा होती है |

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6 thoughts on “गलन की गुप्त ऊष्मा”

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