वाष्पीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें तरल पदार्थ अपने क्वथनांक से नीचे होने पर भी वाष्प में बदल जाता है।
किसी द्रव को जब वायु में खुला रख दिया जाता है तो वह धीरे – धीरे गैस में बदलकर वायुमंडल में लुप्त होने लगता है। जैसे – थोड़े से जल को लेकर एक प्लेट में रखें और उसे हवा में रख देने पर वह कुछ समय बाद समाप्त हो जाएगा। ठीक उसी प्रकार जब हम भीगे हुए कपड़े को हवा में फैलते हैं तो थोड़ी देर बाद वे सूख जाते हैं। किसी द्रव का सामान्य ताप पर धीरे – धीरे गैस अवस्था में परिवर्तित होना ही वाष्पन कहलाता हैं।
क्वथनांक से कम तापमान पर द्रवों के कणों का वाष्प में परिवर्तित होने की इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक
(1) ऊपरी सतह का क्षेत्र बढ़ने पर – वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है। सतही क्षेत्र के बढ़ जाने पर वाष्पीकरण की दर भी बढ़ जाती है।
जैसे – कपड़े सूखने के लिए हम उन्हें फैला देते है।
(2) तापमान में वृद्धि करने पर – तापमान बढ़ जाने पर अधिक कणों को प्रचुर गतिज ऊर्जा मिल जाती है, जिसके कारण वे जल्दी से सतह को छोड़ देते हैं, जिससे वाष्पन की दर बढ़ जाती है।
(3) आर्दता में कमी पर – वायु में मौजूद जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। किसी निश्चित तापमान पर वायुमण्डल की वायु में एक निश्चित मात्रा में ही जलवाष्प होता है। यदि वायु में जल कणों की मात्रा निश्चित मात्रा से अधिक हो जाती है तो वाष्पीकरण की दर घट जाती है।
(4) वायु की गति बढ़ने पर – तेज हवा में कपड़े जल्दी सूख जाते हैं। वायु के तेज होने पर जलवाष्प के कण वायु में कम हो जाते हैं, जिससे वायुमंडल की जलवाष्प की मात्रा घट जाती है। अतः वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।